V.S Awasthi

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जय मां अम्बे की आराधना



जय मां अम्बे की आराधना
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नहीं जानता विधि पूजन की फिर भी करता मैं मातु अर्चना।
ले आया सिन्दूर और रोली स्वीकार करो मां तुच्छ वन्दना।।
अवनी से अम्बर तक मइया तेरी जय जय कार हो रही।
मन्दिर और शिवाले घर घर मइया तेरी ज्योति जल रही।।
घर में या मन्दिर में मइया मूर्ति तेरी मुस्काती है।
बच्चे, बूढ़े हों या जवान महिलाएं जयकार लगाती हैं।।
भक्त भी मां तेरे द्वारे पर मनोकामना लाए हैं।
मां सबको आशीष दे रहीं भक्त भी खुब हरषाए हैं।।
चौबीस घंटे मां के मन्दिर में घंटे घड़ियाल बजा करते।
भक्त भी मां के गीत गा रहे जय जयकार किया करते।।
पथिक भी मां के द्वार पे आया मेरी विनती मां सुन लेना।
मृत्यु लोक के भवसागर से बेड़ा पार लगा देना।।
अहंकार जो भरा है मुझमें उसको मां दूर भगा देना।
दया,ज्ञान और धर्म- कर्म के दीपक सभी जला देना।।
मेरा कुछ भी पास नहीं है सब तेरा तुझको अर्पण करता।
मेरे पास है अहम हमारा उसको मैं मां अर्पण करता।।
अहम हमारा ग्रहण करो मां मैं तेरी शरण में आया हूं।
गल्तियों को मेरी माफ करो मां मैं तेरा हूं, नहीं पराया हूं।।

स्वरचित:- विद्या शंकर अवस्थी पथिक कानपुर

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8 Comments

Gunjan Kamal

05-Oct-2022 07:18 PM

शानदार

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Bahut khoob 💐🙏🌺

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नंदिता राय

03-Oct-2022 09:31 PM

बेहतरीन

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